अर्थव्यवस्था
वह व्यवस्था जिसमें किसी क्षेत्र विशेष में संसाधनों का नागरिकों को आवंटन इस प्रकार से किया जाता है कि नागरिकों का अधिकतम कल्याण हो सके इस पूरी प्रक्रिया में धन की मुख्य भूमिका होती है जिसे अर्थव्यवस्था कहते हैं। अर्थव्यवस्था शब्द किसी क्षेत्र के नाम के बिना अधूरा है अतः पूर्ण शब्द है भारतीय अर्थव्यवस्था।
अर्थशास्त्र
यह एक ऐसा विषय है जिसके अंतर्गत समाज के भौतिक कल्याण के कारणों का अध्ययन किया जाता है अर्थशास्त्र का शाब्दिक अर्थ है धन है शास्त्र अर्थात यह उन सभी सिद्धांतों का संग्रह है जिनका प्रयोग करके दुर्लभ संसाधनों का उचित आवंटन किया जाता है।
अर्थशास्त्र व सामाजिक विज्ञान है जो स्थिरता विकास को प्राप्त करने एवं उसे बनाए रखने के लिए दुर्लभ संसाधनों के उचित आवंटन से संबंधित है।
अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था में अंतर
अर्थशास्त्र एक सैद्धांतिक विचारधारा है जबकि अर्थव्यवस्था उसका वास्तविक स्वरूप है अर्थशास्त्र विषय के अंतर्गत विभिन्न आर्थिक सिद्धांत सम्मिलित हैं जिनका प्रयोग करके किसी देश की अर्थव्यवस्था में संसाधनों का आवंटन किया जाता है इस प्रकार अर्थव्यवस्था किसी क्षेत्र विशेष में अर्थशास्त्र के सिद्धांतों का गतिशील चित्र है।
किसी भी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के मुख्यता है चार संसाधन होते हैं –
- भूमि
- श्रम
- पूंजी
- उद्यमशीलता
किसी भी अर्थव्यवस्था में विकास प्रक्रिया में मुख्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है
- संसाधनों का अभाव।
- संसाधनों के उचित आवंटन की समस्या।
उपरोक्त समस्याओं को निम्नलिखित तरीकों से भी व्यक्त किया जा सकता है
- क्या उत्पादन किया जाए।
- उत्पादन कैसे किया जाए।
- उत्पादन किसके लिए किया जाए।
- आर्थिक समृद्धि का मॉडल कैसा हो।
अर्थव्यवस्था के प्रकार
- खुली अर्थव्यवस्था
- बंद अर्थव्यवस्था
- समाजवादी अर्थव्यवस्था
- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था
- मिश्रित अर्थव्यवस्था
- अल्पविकसित अर्थव्यवस्था
- विकासशील अर्थव्यवस्था
- विकसित अर्थव्यवस्था
खुली अर्थव्यवस्था
- इस अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात निर्यात की स्वतंत्रता होती है।
- यह अर्थव्यवस्था संसाधनों के मुख्य आवागमन के समर्थक हैं।
- इसके अंतर्गत उदारवादी नीति का प्रयोग किया जाता है।
बंद अर्थव्यवस्था
- इसके अंतर्गत वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात निर्यात पर प्रतिबंध होता है।
- यह अर्थव्यवस्था संरक्षण वादी नीति का समर्थन करती है।
- यह एक आदर्श स्थिति है क्योंकि इस स्थिति में सभी संसाधन पर्याप्त मात्रा में उपस्थित होना चाहिए।
संसाधनों के स्वामित्व के आधार पर अर्थव्यवस्था
समाजवादी अर्थव्यवस्था
- इस अर्थव्यवस्था में कीमतों का निर्धारण केंद्रीय संस्था द्वारा किया जाता है।
- इसके अंतर्गत आर्थिक क्रियाओं में सरकार का नियंत्रण होता है।
- इस अर्थव्यवस्था में नागरिकों के आवश्यकता अनुसार उत्पादन किया जाता है।
- इसका मुख्य उद्देश्य जन कल्याण होता है।
- इस अर्थव्यवस्था में बाजार प्रतिस्पर्धा का अभाव है।
- मांग एवं आपूर्ति का पालन।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था
- इस अर्थव्यवस्था में कीमतों का निर्धारण बाजार शक्तियों द्वारा किया जाता है इसीलिए इसे बाजार आधारित अर्थव्यवस्था भी कहते हैं।
- इसके अंतर्गत आर्थिक क्रियाएं निजी क्षेत्र द्वारा संचालित होती हैं।
- निजी क्षेत्र उपभोक्ता की मांग के अनुसार वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति करता है।
- निजी क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है।
- एडम स्मिथ के अनुसार यह अर्थव्यवस्था (laisez faire) हस्तक्षेप की नीति का पालन करती है।
मिश्रित अर्थव्यवस्था
- इस अर्थव्यवस्था में उत्पादन कार्यों में सरकार की भूमिका सीमित होती है।
- निजी क्षेत्र को वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन की स्वतंत्रता प्रदान की जाती है।
- यह अर्थव्यवस्था बाजार प्रतिस्पर्धा एवं जनकल्याण दोनों को समान रूप से प्रोत्साहित करती हैं।
- इस अर्थव्यवस्था में सरकार नियामक की भूमिका अदा करती है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था है।
विकास की अवस्था के आधार पर अर्थव्यवस्था मुख्यतः तीन प्रकार की होती है
अल्पविकसित अर्थव्यवस्था
- संसाधनों का दोहन प्रारंभिक अवस्था में।
- अति निम्न प्रति व्यक्ति आय।
- अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान।
- तकनीकी की दृष्टि से पिछड़े हुए देश।
- आधारभूत संरचना का अभाव।
- गरीबी एवं बेरोजगारी की उच्च दर।
विकासशील अर्थव्यवस्था
- संसाधनों का दोहन प्रारंभ परंतु अभी भी अनेकों संभावनाएं विद्यमान।
- प्रति व्यक्ति आय अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम।
- आधुनिक तकनीक का अभाव।
- सुदृढ़ आधारभूत संरचना की कमी।
- औद्योगिकीकरण में अनेकों संभावनाएं विद्यमान।
विकसित अर्थव्यवस्था
- संसाधनों का अधिकतम दोहन।
- उच्च प्रति व्यक्ति आय।
- तकनीकी की दृष्टि से अग्रणी देश।
- उच्च स्तर की आधारभूत संरचना।
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र
प्रारंभिक
- इस क्षेत्र में उत्पादन प्राकृतिक संसाधनों की सहायता से।
- यह क्षेत्र कच्चे माल की आपूर्ति का स्रोत है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र की भूमिका सबसे कम है।
द्वितीयक
- इसके अंतर्गत प्राथमिक क्षेत्र से प्राप्त कच्चा माल एवं मशीनों की सहायता से।
- इस क्षेत्र में मूल्यवर्धन किया जाता है।
उदाहरण
- निर्माण क्षेत्र
- विनिर्माण क्षेत्र
तृतीयक
- प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र की उत्पादन गतिविधियों में सहायता करता है।
- प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र में संयोजक का कार्य करता है।
उदाहरण
- बैंकिंग
- शिक्षा
- परिवहन
आय का चक्रीय प्रवाह
किसी भी अर्थव्यवस्था में मुख्यतः तीन संस्थाएं कार्य करती हैं | परिवार, फर्म और सरकार
- परिवार श्रम के स्वामी परिवार के लोग भूमिया सेवा के रूप में संसाधन उपलब्ध कराते हैं।
- परिवार के द्वारा अपनी उपभोग आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग में किया जाता है।
- फर्म एक उत्पादक इकाई है जो वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करती है।
- फर्म द्वारा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए निवेश व्यय किया जाता है।
- सरकार फर्म एवं परिवार के कल्याण के लिए विभिन्न योजनाएं चलाती है।
- सरकार को आय के रूप में टैक्स प्राप्त होता है जिसका प्रयोग कल्याणकारी कार्यों में किया जाता है।
आय के चार चक्रीय प्रवाह में आयात निर्यात को भी शामिल किया जाता है।
- आय का चक्रीय प्रवाह संसाधनों की गतिशीलता के लिए आवश्यक है। संसाधनों की गतिशीलता एक और निवेश के माध्यम से उत्पादन को बढ़ावा देती है जबकि दूसरी और रोजगार सृजन के माध्यम से उपभोग व्यय को प्रोत्साहित करती है।
- इस प्रकार यह आर्थिक समृद्धि के लिए आवश्यक है।
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