भौतिकी जगत l Class- 11I Chapter 1

विज्ञान

प्राकृतिक घटनाओं का विस्तृत गहन सुव्यवस्थित ज्ञान प्राप्त करने को ही विज्ञान कहते हैं।

भौतिकी

प्राकृतिक विज्ञान की एक प्रमुख शाखा है जिसके अंतर्गत प्रकृति के मूलभूत नियमों का अध्ययन कर विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की अभिव्यक्ति की जाती है।

भौतिक विज्ञान

विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत ऊर्जा के विभिन्न स्वरूपों का द्रव्य से उनकी क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

भौतिकी के प्रकार

  1. स्थूल प्रभाव क्षेत्र
  2. सूक्ष्म प्रभाव क्षेत्र

1. स्थूल प्रभाव क्षेत्र–

भौतिकी
  1. यांत्रिकी
  2. विद्युत गतकीय
  3. प्रकाशकीय
  4. ऊष्मा गतिकीय
  5. दोलन तथा तरंगे

यांत्रिकी

यांत्रिकी न्यूटन के गति के नियम तथा न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियमों पर आधारित है इसके नियमों के अंतर्गत पर रॉकेट नोदन, वायु में ध्वनि तरंगों का संचरण आदि का अध्ययन किया जाता है।

विद्युत गतिकीय

इसके अंतर्गत आवेशित तथा चुंबकीय वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है इसके नियमों का प्रतिपादन कूलाम, मैक्स वेल, एंपियर तथा फैराडे ने किया।

प्रकाशकीय

इसके अंतर्गत प्रकाश पर आधारित उपकरणों तथा घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। इसमें परावर्तन, अपवर्तन, ध्रुवण, व्यतिकरण आदि का अध्ययन किया जाता है।

ऊष्मा गतिकीय

इसके अंतर्गत ऊष्मीय संतुलन के नियमों, ऊष्मीय प्रवाह की दिशा, ऊष्मा के कार्य में रूपांतरण एवं ऊष्मा स्थानांतरण के कारण निकाह की आंतरिक ऊर्जा,ताप तथा एंट्रॉफी का अध्ययन किया जाता है।

दोलन तथा तरंगे

इसके अंतर्गत विभिन्न वस्तुओं से कंपन कंपित वस्तु के द्वारा उत्पन्न विच्छेद आदि का अध्ययन किया जाता है।

2. सूक्ष्म प्रभाव क्षेत्र

भौतिकी
  1. नाभिकीय भौतिकी
  2. कणीय भौतिकी
  3. क्वांटम भौतिकी

नाभिकीय भौतिकी

इसके अंतर्गत परमाणु के नाभिक और उसके गुणों का अध्ययन किया जाता है।

कणीय भौतिकी

इसके अंतर्गत उन कणों का अध्ययन किया जाता है जिससे सभी पदार्थ बने होते हैं।

क्वांटम भौतिकी

इसके अंतर्गत प्रकाश कि व कण की प्रकृति तथा नवीन भौतिकी के सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है।

भौतिकी का विज्ञान की अन्य शाखाओं से संबंध –

रसायन से भौतिकी का संबंध –

परमाणु संरचना रेडियो एक्टिवता x किरणों के विवर्तन आदि ने आवर्त सारणी को परिवर्तित करने में सहायता की है।

जीव विज्ञान से भौतिकी का संबंध –

जीव विज्ञान की दो शाखाएं जंतु विज्ञान तथा वनस्पति विज्ञान दोनों भौतिक विज्ञान से संबंधित हैं भौतिकी की खोज x किरणों का उपयोग, हड्डियों के टूटने, शरीर में पथरी, गोली आदि का पता करने में किया जाता है।

गणित से भौतिकी का संबंध –

अनेक गणितीय विधियों का विकास भौतिकी के सिद्धांत के कारण ही संभव हो सका है जैसे गति के समीकरण अवकलन समीकरण आदि।

खगोल विज्ञान का भौतिकी से संबंध –

भौतिकी के नियमों से कैपलर के ग्रहों संबंधी नियम परिक्रमण काल कक्षा की आकृति आदि की सूचनाएं भौतिकी की ही देन है।

भौतिकी, प्रौद्योगिकी तथा समाज –

प्रौद्योगिकी, भौतिकी तथा समाज के बीच घनिष्ठ संबंध है कभी भौतिकी नवीन प्रौद्योगिकी को जन्म देती है तो कभी प्रौद्योगिकी नवीन भौतिकी को जन्म देती है। भौतिकी के सिद्धांतों तथा प्रयोग को प्रयुक्त कर अनेक मशीनें एवं उपकरण बनाए हैं जो समाज के लिए अत्यधिक लाभकारी सिद्ध हो रहे हैं –

उदाहरण

  • ऊष्मा गतिकी के नियमों की सहायता से ऊष्मा इंजन एवं प्रशीतक का विकास संभव हो सका है।
  • गुरुत्वाकर्षण के नियमों के उपयोग से कृत्रिम उपग्रह एवं अंतरिक्ष यान ओं का प्रक्षेपण संभव हो सका है।
  • नाभिकीय विखंडन के आधार पर नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया के द्वारा परमाणु रिएक्टर से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है तथा अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया के द्वारा परमाणु बम का निर्माण हो सका है।

प्रकृति में मूल बल –

बल वह बाह्य कारक है जो किसी वस्तु की स्थिति में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने का प्रयास करता है अर्थात बल वह बाह्य कारक है जो किसी वस्तु की विराम अवस्था, गतिवस्था आकार आदि में परिवर्तन करता है।

प्रकृति में चार प्रकार के बल होते हैं –

भौतिकी
  1. गुरुत्वाकर्षण बल
  2. विद्युत चुंबकीय बल
  3. प्रबल नाभिकीय बल
  4. दुर्बल नाभिकीय बल

गुरुत्वाकर्षण बल –

दो पिंडों के बीच कार्य करने वाला गुरुत्वाकर्षण बल उन दोनों पिंडों के द्रव्यमान के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच के दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

गुरुत्वाकर्षण बल के प्रमुख गुण –

  1. गुरुत्वाकर्षण बल सार्वत्रिक बल है जो ब्रह्मांड में प्रत्येक 2 वस्तुओं के बीच कार्य करता है।
  2. गुरुत्वाकर्षण बल एक दीर्घ परास बल है।
  3. यह बल एक केंद्रीय बल है अतः यह एक संरक्षी बल है।
  4. G सार्वत्रिक नियतांक है जिसका मान 6.67 * 10 है।

विद्युत चुंबकीय बल

दो स्थिर बिंदु आवेशों के मध्य कार्य करने वाला वैद्युत बल उन दोनों आवेशों की मात्राओं के गुणनफल के समानुपाती तथा उनकी बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

यदि दो स्थिर बिंदु आवेश q1 तथा q2 जो परस्पर आर दूरी पर स्थित है तो इनके बीच कार्य करने वाला वैद्युत बल –

विद्युत चुंबकीय बल के गुण

  1. विद्युत चुंबकीय बल केंद्रीय बल है अतः यह एक संरक्षी बल भी है।
  2. यह बल आकर्षण एवं प्रतिकर्षण दोनों प्रकृति का होता है।
  3. यह बल गुरुत्वाकर्षण बल से 1036 गुना अधिक प्रबल होता है।
  4. यह बल आवेशों के बीच के माध्यम पर निर्भर करता है।

प्रबल नाभिकीय बल–

नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन और न्यूट्रॉन आपस में जिस बल से बंधे रहते हैं उसे प्रबल नाभिकीय बल कहते हैं।

अथवा नाभिक में उपस्थित नाभिकीय कणों के बीच कार्यरत स्थिर वैद्युत बल प्रबल नाभिकीय बल कहलाता है।

प्रबल नाभिकीय बल के गुण

  1. प्रबल नाभिकीय बल लघु परास में कार्यरत आकर्षण बल है।
  2. यह बल प्रकृति में पाए जाने वाला प्रबलतम बल है।
  3. यह बल आवेशों की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता है।
  4. यह बल ना तो गुरुत्वाकर्षण बल है और ना ही विद्युत चुंबकीय बल है।

दुर्बल नाभिकीय बल

किसी रेडियो एक्टिव नाभिक के छह में तथा मूल कणों के बीच कार्यरत बल दुर्बल नाभिकीय बल कहलाता है।

दुर्बल नाभिकीय बल के गुण

  1. दुर्बल नाभिकीय बल लघु परास में कार्यरत आकर्षण बल है।
  2. यह बल भी आवेशों की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता है।
  3. दुर्बल नाभिकीय बल प्रबल नाभिकीय बल तथा विद्युत चुंबकीय बलों से दुर्बल तथा गुरुत्वाकर्षण बल से प्रबल होते हैं।

विद्युत आवेश संरक्षण का नियम

विद्युत आवेश को ना ही उत्पन्न किया जाता है ना ही नष्ट किया जा सकता है केवल एक रूप से दूसरे रूप में स्थानांतरित किया जा सकता है।

ऊर्जा संरक्षण का नियम

ऊर्जा को ना ही उत्पन्न किया जा सकता है और ना ही नष्ट किया जा सकता है उसे केवल एक रूप से दूसरे रूप में बदला जा सकता है।

द्रव्यमान ऊर्जा संरक्षण का नियम

किसी निकाय में अभिक्रिया से पूर्व कुल ऊर्जा तथा द्रव्यमान के समतुल्य ऊर्जा का कुल योग, अभिक्रिया के पश्चात कुल ऊर्जा तथा द्रव्यमान के समतुल्य ऊर्जा के योग के बराबर होता है। आइंस्टीन का द्रव्यमान समीकरण निम्न है – E=MC²

रेखीय संवेग संरक्षण का नियम

यदि किसी निकाय पर कार्यरत कुल बाह्य बल शून्य हो तब निकाय का रेखीय संवेग नियत रहता है। रेखीय संवेग = M.V

कोणीय संवेग संरक्षण का नियम

यदि किसी निकाय पर कार्यरत कुल बाह्य बल आघूर्ण शून्य हो तब निकाय का कोणीय संवेग नियत रहता है अतः कोणीय संवेग = IW = नियतांक

प्रश्न – उस बल का नाम बताइए जो ब्रह्मांड को बनाए रखता है?

उत्तर – कणों के विनिमय द्वारा उत्पन्न क्वार्क बल, मौलिक बल होता है यही बल ब्रह्मांड का मूल आधार है।.

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