प्रबोधन काल (the age of enlightenment)- WorldHistory

प्रबोधन का अर्थ (Meaning of enlightenment)

पुनर्जागरण कालीन लौकिक जीवन पर मानवतावाद एवं तार्किक वैज्ञानिक खोजों पर बल देने वाली प्रवृत्ति ने 18वीं सदी में परिपक्वता प्राप्त कर ली। चिंतन की यह परिपक्व अवस्था प्रबोधन (enlightenment)के नाम से जानी जाती है।

विशेषताएं

enlightenment
properties of enlightenment

प्रबोधन कालीन चिंतन ज्ञान को विज्ञान से जोड़ा और कहा कि हमारे लिए सत्य वही है जिसका प्रयोग एवं परीक्षण किया जा सके।

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वस्तुतः ज्ञान अवस्था का विषय नहीं बल्कि तर्क एवं प्रमाण से युक्त होता है मध्य युग में कहा गया कि सृष्टि ईश्वर द्वारा निर्मित है अतः उसे मानव द्वारा नहीं जाना जा सकता है।

अर्थात यह दुनिया मानव की समझ से परे है इसलिए मध्यकाल में यह सूत्र वाक्य प्रचलित था कि जहां ज्ञान का प्रकाश नहीं होता वहां विश्वास की ज्योति से रास्ता दिखाई पड़ता है।

इस तरह मध्यकाल आस्था पर बल देता है जबकि प्रबोधन कालीन चिंतन इस मान्यता का खंडन करता है और प्रयोग एवं परीक्षण पर बल देते हुए जानो तब मानो की बात पर बल देता है।

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कारण कार्य संबंधों का अध्ययन प्रबोधन के चिंतन का मुख्य तत्व है वस्तुतः किसी भी घटना के लिए कोई कारण उत्तरदाई होता है।

अतः इस कारण को जानना जरूरी है क्योंकि प्रकृति की विनाशक गतिविधियों से मानव की रक्षा की जा सके तथा मानव प्रकृति की शक्तियों का रचनात्मक प्रयोग कर सकें।

इतना ही नहीं समाज में मौजूद विषमता और शासन प्रणाली में मौजूद निरंकुशता के कारणों को जानने पर भी बल दिया गया।

उनके चिंतन में मानवतावाद पर बल दिया जिसका तात्पर्य है मानव की क्षमता उसके तर्क एवं विवेक को महत्व दिया जाना।

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मध्य युग का चिंतन था कि मानव जन्म से पापी है जबकि प्रबोधन कालीन चिंतकों का मानना है कि मानव जन्म से अच्छा एवं विवेकशील है।

किंतु विकास के क्रम में वह धर्म अधिकारियों के हाथों में पड़कर स्वार्थी एवं भ्रष्ट हो गया है।

अतः मानव को इस भ्रष्ट आचरण से मुक्त होकर प्रत्येक मानव का सम्मान करना चाहिए।

प्रबोधन के चिंतकों ने प्रकृति पर बल देते हुए कहा कि प्रकृति स्वतंत्र एवं सौंदर्य से परिपूर्ण है।

इसी तरह मानव भी स्वतंत्र है किंतु विकास के क्रम में मानव के ऊपर अनेक नियंत्रण लगा दिए गए और वह परतंत्र हो गया है

अतः मानव की स्वतंत्रता के लिए जरूरी है कि वह प्रकृति की ओर लौटो जहां किसी तरह के धर्म धर्म नस्ल आदि का बंधन नहीं था।

प्रबोधन के चिंतकों ने देव वाद या प्राकृतिक धर्म पर बल दिया जिसका तात्पर्य है कि मानव कर्मकांड से मुक्त होकर आचरण करें।

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इन चिंतकों ने कहा कि किसी परम सत्ता ने इस संसार का निर्माण किया है तो उसके द्वारा निर्मित सभी जीवो के प्रति सहृदयता का व्यवहार करना चाहिए।

इसी क्रम में चिंतकों ने यह स्पष्ट किया कि चाहे किसी परम सत्ता ने इस संसार का निर्माण किया हो किंतु अब इस संसार को चलाने के लिए पूर्णतया मानव उत्तरदाई है।

इस प्रकार प्रबोधन के चिंतकों ने ज्ञान को विज्ञान से जोड़ने वाले प्रयोग परीक्षण पर बल देने तथा कारणों की पहचान पर बल देने के माध्यम से अनेक वैज्ञानिक सिद्धांत और यंत्रों की खोज को संभव बनाया।

फलता मशीनीकरण को बढ़ावा मिला और मानव के भौतिक सुख सुविधाओं में वृद्धि हुई साथ ही मानवतावाद एवं प्रकृति पर बल देते हुए प्रबोधन के चिंतकों ने मानव की समानता एवं स्वतंत्रता को प्रोत्साहित किया।

इस दृष्टि से प्रबोधन कालीन चिंतन मनुष्य के भौतिक जीवन में वृद्धि के साथ-साथ मानव मूल्यों की स्थापना पर बल देता है।

प्रमुख विचारक ( Thinker of enlightenment )

रूसो एक प्रबोधन कालीन विचारक है जिसने मानव की स्वतंत्रता समानता पर बल देते हुए मानव अधिकारों की सुरक्षा की बात की। उसके चिंतन को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है

प्रकृति पर बल

रूसो ने कहा कि मानव स्वतंत्र पैदा हुआ है किंतु सर्वत्र जंजीरों से जकड़ा हुआ है।

वस्तुतः प्रकृति की तरह मानव भी स्वतंत्र है किंतु भौतिक विकास के साथ मानव पर अनेक नियंत्रण आरोपित किए गए जिससे उसकी स्वतंत्रता समाप्त हो गई।

अतः मानव की स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है कि वह प्रकृति की ओर लौटे जहां संपत्ति की अवधारणा नहीं थी।

दरअसल रूसो ने कहा कि प्रकृति की संपदा पर सबका अधिकार है इस तरह रूसो के चिंतन ने समाजवाद के बीच दिखाई पड़ते हैं।

असमानता पर चोट

रूसो ने मानव निर्मित सामाजिक असमानता पर चोट करते हुए कहा कि संपत्ति के अवधारणा के विकास के साथ मानव स्वार्थी एवं लालची हो गया है।

और इसने अपने चारों ओर एक कृत्रिम आवरण बना लिया है इस आवरण को हटाकर ही मानव प्रकृति की ओर समतामूलक समाज में लौट सकता है।

इस प्रकार रूसो ने धर्म धन नस्लें आदि पर आधारित असमानता को समाप्त करते हुए मानव की समानता पर बल दिया।

इस बिंदु पर रूसो के चिंतन में समाजवाद के बीच देखे जा सकते हैं।

राज्य की उत्पत्ति एवं सामान्य इच्छा का सिद्धांत

रूसो ने राज्य की उत्पत्ति के संदर्भ में बताया कि संपत्ति की अवधारणा के विकास के साथ मानव में असुरक्षा की भावना पैदा हुई।

अतः सुरक्षा के लिए उसने अपने अधिकार जिसे सौंप दिया उसे राज्य के नाम से जाना जाता है।

इस प्रकार राज्य की उत्पत्ति लोगों के बीच एक समझौते से हुई है इस समझौते के तहत सुरक्षा देने के बदले राज्य व्यक्ति के अधिकारों को ग्रहण करता है।

जब व्यक्ति अपने स्वार्थों को भूलकर अपने अधिकार सामान्य हित के लिए किसी प्रतिनिधि को सकता है तो वह सामान्य इच्छा कहलाती है।

यदि वह प्रतिनिधि सामान्य इच्छा के विरुद्ध कार्य करें तो उसे लोगों के द्वारा हटाया भी जा सकता है।

इस बिंदु पर रूसो के चिंतन में प्रजातंत्र के बीच दिखाई पड़ते हैं किंतु जब सामान्य इच्छा के नाम पर वह प्रतिनिधि अपनी स्वार्थ पूर्ति करने लगे और अपनी इच्छा आरोपित करने लगे तो ऐसे में निरंकुशता भी पैदा होती है।

जैसा की फ्रांसीसी क्रांति के दौरान रोबोस्पियर ने आतंक के राज्य की स्थापना किया था।

निष्कर्ष (Conclusion of enlightenment)

इस तरह हम कह सकते हैं कि रूसो के चिंतन में समाजवाद एवं प्रजातंत्र के बीच दिखाई पड़ते हैं तो साथ ही सामान्य इच्छा के सिद्धांत की विकृत व्याख्या से निरंकुशता भी पैदा हो सकती है।

वस्तुतः रूसो ने निरंकुशता स्थापित करने की बात नहीं की थी बल्कि वह तो मानव अधिकारों का समर्थक था।

Question for answer writing practice of enlightenment

रूसो के चिंतन में समाजवाद प्रजातंत्र एवं निरंकुशता के बीच दिखाई देते हैं। टिप्पणी कीजिए ?

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