बाल कल्याण और उनके अधिकार को ध्यान में रखते हुये बच्चों को मानवता का पिता कहा जाता है | किसी भी राष्ट्र का निर्माण बच्चों की सुरक्षा और विकास सुनिश्चित किए बगैर संभव नहीं है | देश की संसद ने शुरुआत से ही बाल अधिकारों को सुरक्षित करने के प्रयास किए हैं।
- संविधान के मसौदे में ही बच्चों के सर्वांगीण विकास का लक्ष्य रखा गया।
- बाल श्रम की न्यूनतम आयु और कार्य की परिस्थितियों की पड़ताल की गई।
- निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा पर भी बल दिया गया।
- तो बाल विवाह जैसी कुरीतियां समाप्त करने के लिए संसद कृत संकल्प लें और 1949 में शारदा कानून में बदलाव किए गए विवाह की आयु में विचार मंथन हुआ।
1948 में संविधान के मसौदे पर चर्चा में बच्चों के साथ ही उनके अधिकारों पर चर्चा की गई। चर्चा में निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के साथ ही बच्चों की सेवा योजित करने की आयु तय करने का भी संविधान में प्रावधान किया गया।
आजादी के बाद देश की संसद ने बाल श्रम को लेकर एक अहम कानून पारित किया गया इससे कानून के तहत बच्चों में काम करने के घंटों को भी तय किया गया।
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